OMG: एक ऐसी जगह जहां आत्महत्या करना भी है एक रिवाज, जरूर पढ़ें खबर

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मलेशिया में आत्महत्या का एक रिवाज-सा है। इसका संबंध वहां के प्राचीन इतिहास से है। सोलहवीं शताब्दी में वहां के देशभक्त युवक स्वराज्य प्राप्ति के लिए मर मिटने को तैयार रहते थे। आज की तरह उन्हें प्रलोभित करके धर्मान्तरण के लिए विवश नहीं किया जा सकता था। वे धर्मान्तरण की अपेक्षा मृत्यु को वरण करना अधिक पसंद करते थे और इसी मानसिक भावना ने एक रिवाज का रूप धारण कर लिया। आत्महत्या का यह रिवाज एक रोग के रूप में माना गया जिसे मानस रोग एमोक के नाम से जाना जाता है।

संसार के विभिन्न स्थानों में वहां की संस्कृति, जलवायु जलप्रभाव तथा अंधविश्वासों के कारण आत्महत्या का यह रोग दावानल की तरह फैलता जा रहा है। आत्महत्या का यह रोग पिछड़े और अशिक्षित लोगों में ही नहीं वरन् अब शहरी एवं शिक्षित लोगों में भी दिखाई देने लगा है। इंगलैंड के एक परिवार का हर नर सदस्य पचास वर्ष की आयु पूर्ण नहीं कर पाएगा। वहां के एक अखबार स्टेट्समैन में एक समाचार इसी के संबंध में प्रकाशित हुआ था। समाचार यह था कि सातवें अर्ल क्रेवल ने केवल 26 वर्ष की आयु में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

आत्महत्या का कारण यह था कि वे पिछले पांच वर्षो से मुत्यु के अनोखे रिवाज से भयभीत थे। वे शाही परिवार के अकेले पुरुष सदस्य थे। उनके परिवार के इतिहास में लिखा हुआ था कि उनके पिता केवल 35 वर्ष की उम्र में एवं दादा 37 वर्ष की उम्र में दुर्घटनाग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हुए थे। पचास वर्ष की आयु दुर्भाग्यवश कोई भी पूर्ण नहीं कर पाया था। वह परिवार इंगलैंड के एक छोटे से गांव में रहता है। वहां के गांव वालों का कहना है कि पहले यह एक रियासत थी और इस रियासत का नाम मार्शल बर्कशायर था।

इसी रियासत के एक बूढ़े व्यक्ति ने एक अबोध कन्या के साथ अनाचार किया था। इस अनाचार की मानसिक त्रासदी से तंग आकर उस कन्या ने आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या से पूर्व उसने यह श्राप दिया था कि इस परिवार का कोई भी सदस्य पचास वर्ष पूर्ण नहीं कर पाएगा। पचास वर्ष की आयु पूर्ण करने के पूर्व ही वह मानसिक रोगों से त्रस्त होकर आत्महत्या कर लेगा। यह अभिशाप अक्षरश: सत्य साबित हुआ है। इतिहास गवाह है कि इस परिवार की हर पीढ़ी के पुरुष सदस्य पचास वर्ष के पूर्व ही आत्महत्या कर कालकवलित हो गए।

उन सभी पुरुषों को स्किजोफ्रेनिया नामक एक मानसिक रोग ने आ घेरा था। यह मानसिक रोग, रोगी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है। कुछ लोग कहते है कि उस कन्या के अभिशाप का भय उनके दिमाग पर हावी हो गया था, इसलिए वे एक के बाद एक आत्महत्या करते रहे। अफ्रीका के जंगल में एक कबीला है। जन जाति के इस कबीले के कई विचित्र रिवाज हैं। उन रिवाजों में आत्महत्या का भी एक रिवाज है। वहां पुरुष या स्त्री साठ वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद वर्ष भर के अंदर जहरीली पत्तियों का सेवन करते है जिससे उन्हें गहरी निद्रा आ जाती है जो बाद में चिर निद्रा में बदल जाती है।

जो इस रिवाज का पालन नहीं करते, उन्हें उनके कबीले से निकाल दिया जाता है और बियावान घने जंगलों में खदेड़ दिया जाता है जहां विषैले सर्प, विशाल अजगर एवं कई विषैले जीव जंतु रहते हैं। वहां वे असहाय वृद्ध भयानक मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वहां के कबीले वालों के कहने के अनुसार यह एक प्राचीन मान्यता है जो उनकी सैकड़ों पीढ़ियों से चली आ रही है। इस मान्यता का पालन न करने पर देवता कुपित होते हैं और दंडस्वरूप उनके परिवार के छोटी उम्र के किसी भी सदस्य की बलि ले सकते हैं। इसलिए भयवश उस परिवार के सभी लोग इस रिवाज का पालन कठोरता से करते हैं ताकि कम उम्र के किसी भी सदस्य को यह दंड न भुगतना पड़े।