Baisakhi 2024 : फसलां दी मुक गई राखी जट्टा आई बैसाखी…जानिए इसका महत्व और इतिहास

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पंजाबः बैसाखी का त्योहार उत्तरी भारत में धूमधाम से मनाया जाता हैं। ये त्याेहार कृषि से जुड़ा हुआ हैं। बैसाखी का त्योहार खास कर पंजाब में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। सिख समुदाय में बैसाखी का त्योहार खालसा पंथ की स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता हैं। 1699 में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। बैसाखी के दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने तब एक एकीकृत राज्य की स्थापना की हैं। इसी के चलते ये दिन बैसाखी के तौर पर मनाया जाने लगा। बैसाखी के दिन बंगाल में पोइला बोइसाख, बिहार में सत्तूआन, तमिलनाडु में पुथांडु, केरल में विशु और असम में बिहू मनाया जाता हैं।

बैसाखी का आध्यात्मिक दृष्टिकोण

बैसाखी पर्व के दिन सूर्य बारह राशियों का चक्र पूरा करके इस दिन पुन: मेष राशि में आता है। यह इस बात का प्रतीक है कि वर्ष बीत गया है। इस दिन यह कामना की जाती है कि आने वाला वर्ष मंगलमय हो। इस दिन को नववर्ष का पहला दिन आंका जाता है। हिन्दू धर्म के अनुयायी नवग्रह पूजन करते हैं और पावन ग्रन्थों का पाठ भी इस अवसर पर किया जाता है। अधिकांश लोग इस दिन तीर्थस्थलों पर जाकर स्नान करते हैं। यदि ऐसा संभव न हो सके तो गंगा जल डालकर स्नान किया जाता है। बैसाखी पर्व ज्योतिष गणना के मुताबिक शुभ दिन आंका गया है, इस दिन नए कार्य भी प्रारंभ किए जाते हैं। भपुराणों में वर्णन मिलता है कि बैसाखी के दिन गंगा में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

बैसाखी देश भक्ति का प्रतीक

वर्ष 1919 की खूनी बैसाखी के दिन अनेक माताओं की गोद सुनी हुई, अनेक सुहागिनों के सुहाग उजड़ गए। अनेक बहनों, बेटियों के भाई और पिता सदा के लिए खामोश हो गए। जलियांवाला बाग अमृतसर में विशाल जनसमूह रोलट एक्ट का विरोध करने के लिए एकत्रित हुआ और जब लोग अपने नेताओं के विचार सुन रहे थे तभी जनरल डायर ने निहत्थे लोगों को अपने कायर सैनिकों की सहायता से गोलियों से भून डाला। कई लोग जान बचाने की भाग-दौड़ में कुंए में गिर गए। दो हजार के करीब शहीद हुए लोगों का श्रद्धांजलि दिवस भी बैसाखी पर्व है। शीत ऋतु का अंत और ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ से पूर्व वृक्षों के नए पत्ते आने से उनमें नवसंचार होता है और शरीर में भी स्फूर्ति आ जाती है। किसान परिवारों के अरमान भी इस दिवस पर अपने चरम पर होते हैं। खेतों में लहलहाती फसल देख किसान का सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है और उसे उसकी मेहनत का फल मिलने की आशा बंध जाती है। गेहूं की फसल की कटाई के श्रीगणोश का पारम्परिक दिन भी बैसाखी पर्व ही है।

बैसाखी पर पंजाब में लगते हैं मेला

बैसाखी के अवसर पर विशेषकर पंजाब में मेले लगते हैं। मेले का भाव मेल है। सभी लोग आपस में प्रेमभाव से मिलते हैं। जालंधर के करतारपुर में बैसाखी का मेला प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त लोग मंदिरों, गुरुद्वारों में जाकर नववर्ष के मंगलमय होने की कामना भी करते हैं।

कैसे पड़ा नाम बैसाखी?

बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है। इस दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं जिस कारण इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

बैसाखी का क्या हैं महत्व

इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और इस दिन से उसकी कटाई शुरू हो जाती हैं।बैसाखी को फसल पकने और सिख धर्म की स्थापना के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। तभी से बैसाखी का त्योहार मनाया जाता हैं।