जालंधर चुनाव में रोचक मुकाबले की सम्भावना

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जालंधर की राजनीती लगातार रंग बदल रही है, स्थितियां रोचक हो रही हैं. जहाँ पहले कांग्रेस से आप में गए सुशिल रिंकू 2023 में सांसद बने और अब आप द्वारा उम्मीदवार ऐलान किए जाने के बावजूद वे भाजपा ज्वाइन कर गए थे। अब पुराने कांग्रेसी और कई चुनाव लड़ चुके महिन्दर सिंह केपी अकाली दल के लिए चुनाव मैदान में है,
कांग्रेस ने इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को जालंधर से उम्मीदवार बनाया है। इस सबके बीच अब टकसाली कांग्रेसी चौधरी परिवार के विधायक बेटे के मुखर विरोध के चलते कांग्रेस में एक असमंझस की स्थिति हो गई है। चौधरी परिवार की सरताज सरदारनी करमजीत कौर चौधरी ने तो भाजपा में सदस्यता भी ले ली है। आप ने अकाली दल के पवन टीनू को आप में ज्वाइन करा कर उन्हें आम आदमी पार्टी जालन्धर से उम्मीदवार भी बनाया है। और अब पुराने कांग्रेसी और कई चुनाव लड़ चुके महिन्दर सिंह केपी अकाली दल के लिए चुनाव मैदान में है, वैसे बसपा के बलविंदर कुमार भी काफी अनुभवी उम्मीदवार हैं और पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं।
लेकिन अगर चुनाव विश्लेषण करने वालों की माने तो जालंधर की राजनीती में इस बार बड़ा हल्ला बोल होने जा रहा है। सभी उम्मीदवार अपने खेल में माहिर खिलाड़ी हैं आने वाले दिनों में दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद की जा रही है।
जालन्धर में पिछले अंदाज से लगभग 10 या 10.5 लाख वोट पोल होते हैं। पांच बराबर के उम्मीदवार मैदान में हैं। लगभग सभी चैनल अपने पोल सर्वे में यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल रहे हैं। एक अनुमान से 2.60 से 2.80 लाख के बीच वोट लेने वाला ही विजेता होगा और पिछले अनुभव के हिसाब से कांग्रेस या आप ही इतनी वोट लेते रहे हैं। इसलिए टीवी चैनल ऐसा बता रहे हैं। यहाँ देखने वाली बात है कि यह चुनाव पिछले चुनाव से अलग है
एक तो सबसे बड़ी बात कि मोदी जी का फैक्टर यहाँ काम करेगा, और इससे भाजपा का वोट बढेगा। अब कितना बढेगा यह देखना होगा क्यूँकि अगर भाजपा का वोट 15 से 20% बढ़ता है जिसकी कि बहुत सम्भावना है तो फिर कांग्रेस को यह चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी तरफ आप को भी गांव देहात में विरोध का सामना करना पड़ रहा है और अगर इन हालात में अकाली दल का परम्परागत वोट बैंक वापस अकाली दल को वोट करने की सोचेगा तो आप का वोट भी घट जाएगा ऐसी स्थिति में चारों पार्टियां का लगभग बराबरी वाली स्थिति में होने की सम्भावना हो जाएगी और शायद इसी सिचुएशन का आभास ही सब नेताओं को दल परिवर्तन करने की वजह बन रहा है। आने वाले दिनों में यह स्थितियां और साफ होंगी।
लगातार रंग बदल रही जालंधर की राजनीती में स्थितियां और रोचक होंगी और इस बार शायद परिणाम भी अप्रत्याशित हो सकता है।