क्या पंजाब के संसदीय चुनाव के समय किसानों का आन्दोलन किसी बड़ी राजनीति का हिस्सा है?

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क्या पंजाब के संसदीय चुनाव के समय किसानों का आन्दोलन किसी बड़ी राजनीति का हिस्सा है?

जब पंजाब में अकाली दल और भाजपा का गठबंधन हो रहा था सब कुछ लगभग फाईनल हो चुका था, सीट आंबटन तक भी तय हो गया था। ठीक उसी समय पंजाब के किसानों का आंदोलन शुरू हो गया। सबको दिल्ली कूच करने का आहवान कर दिया गया। किसान आंदोलन के कर्ताधर्ता लोगों को पता था कि सरकार हमें दिल्ली नहीं जाने देगी, सो धरना पंजाब में ही लगेगा और इसका असर भी केवल पंजाब की राजनीति पर ही होगा। लिहाजा वही सब हुआ भी, परन्तु इसका सबसे बड़ा असर हुआ अकाली दल और भाजपा के गठबंधन पर। क्योंकि अकाली दल को किसान बहुल वोट बैंक ही चुनाव में जीताता है और कोर वोट बैंक भी गांवों की पृष्ठभूमि से ही है। सो अकाली दल और भारत सरकार ने कोशिश तो की कि कोई समझौता हो जाए, तीन दिन तक तीन केन्द्रीय मंत्री चण्डीगढ़ रहे, बातचीत के कयी दौर चले परन्तु समझोता नहीं हो पाया या नहीं किया गया। जैसे हम अपना अनुमान बता रहे हैं। अब यहाँ देखने वाली कुछ बातें हैं कि अगर यह आंदोलन न हुआ होता तो अकाली दल और भाजपा मिल कर चुनाव लड़ रहे होते तो हमारे आकलन से कम से कम 6-8 सीटों पर विजयी हो सकते थे। अब यह आंकड़ा शायद 1-2 पर सिमट सकता है। इसका फ़ायदा इन्डिया गठबंधन को ही होगा चाहे आप जीते या कांग्रेस। पंजाब की लगभग सभी सीटों पर यह फायदा होता दिख रहा है। ऐसा सुना जा रहा है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने पंजाब की सभी सीटों को जीत और हार में आपस में बांट लिया है। कुछ सीटों पर दोनों पार्टियों ने एक दूसरे के खिलाफ कुछ कमज़ोर उम्मीदवार उतारे हैं और फिर अपने अपने पार्टी कैडर को भी इसका इशारा दे दिया है ।
सरकार को किसान भाईयों की समस्या पर विचार जरूर करना चाहिए और दूसरी तरफ किसान संगठनों को भी राजनीति से उपर उठकर इन मुद्दों का समाधान करवाने की पहल करनी चाहिए। आम जनता को तकलीफ देने की बजाय सरकारी मन्त्रीयों या अफ़सरों के घरों को ब्लॉक करना चाहिए नाकि सड़क या रेलवे को। उद्योग जगत को भी इस आंदोलन से बहुत नुकसान हो रहा है। यातायात भी लम्बी दूरी होने पर मंहगा हो रहा है। इससे आंदोलन के प्रति आम जनता की सहानुभूति खतम होती है। हमारी अपील है कि संगठनों को सरकार के साथ एक खुशनुमा माहौल में इन सब मुद्दों पर आम सहमति से काम करने की ओर बढ़ना चाहिए।
इसी कड़ी में ऐसा लग रहा है कुछ चर्चा भी है कि अभी आंदोलन शायद और लम्बा चल सकता है।
यहाँ हम यह साफ करदें कि यह बातें हम अपनी ओर से प्रदेश के हित में पाठकों के सामने रख रहे हैं। हम किसी विशेष पार्टी या व्यक्ति का समर्थन नहीं करते।