योग केवल आसनों का समूह मात्र नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन पद्धति है! दैनिक जीवन में कब उठना है, कब सोना है, क्या करना है कैसे करना है – यह सब यौगिक जीवन का ही अंग है! श्री गीता जी में अर्जुन से योगेश्वर श्री कृष्ण कहते हैं, *तस्माद योगी भवार्जुन और योगस्थ: कुरू कमार्णि अर्थात योग में स्थिर रहते हुए सभी कर्मों को करें तो सफलता अवश्य मिलेगी.
इसी तरह *युक्ताहारविहारस्य युर्तचेष्टस्य यानी संतुलन, संयम अर्थात आहार – विहार, विचार और व्यवहार का संयम बनाकर रखें. *अथ योगानुशासनम अर्थात योग का अर्थ ही है अनुशासन! जीवन में अनुशासन होगा तो किसी भी तरह की समस्या परेशान नहीं करेगी, साथ ही तनाव भी नहीं होगा – *योग भवति दु:खहा जीवन के लिए योग रामबाण है, संजीवनी बूटी है! इसलिए योगरूपी धरोहर को जानना, जीना और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करना अति आवश्यक है.
जीवन में हम योगी बन सकें या न बन सकें, कोई बात नहीं! लेकिन इस संकट के काल में सहयोगी बनें और उपयोगी जरुर बनें! श्वासों के अनुलोम – विलोम के साथ – साथ विचारों का अनुलोम – विलोम भी करें! नकारात्मक विचार बाहर और सकारात्मक विचार भीतर रहें, यही वास्तव में प्राणायाम है!
मन को पद्मासन में बैठाएं, तन को वज्रासन में रखें, मस्तिष्क को सूर्य नमस्कार कराएं, और होंठों से हास्य योग करें! हंसिए और हंसाइए.! इससे मन शांत होगा, समस्याओं का समाधान मिलेगा और तनाव कम होगा! योग शरीर, मन व भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का एक श्रेष्ठ माध्यम है! यह हमें आध्यात्मिक ऊंचाईयों तक पहुंचाता है और तनावमुक्त जीवन जीना सिखाता है. *करें योग रहें निरोग