मध्य प्रदेश में BJP की PM Modi के चेहरे पर चुनाव लड़ने की तैयारी

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भोपाल : मध्य प्रदेश में इसी साल होने वाले विधानसभा के चुनाव कशमकश भरे होंगे और बाजी किसके हाथ लगेगी इसका पूवार्नुमान किसी को नहीं है। लिहाजा सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी किसी तरह की चूक करने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ने का लगभग मन बना लिया है। राज्य में भाजपा की लगभग दो दशक से सरकार है। बीच में लगभग सवा साल ऐसा आया था जब कांग्रेस के हाथ में सत्ता थी। लंबे अरसे से सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में होने के कारण पार्टी को एंटी इनकंबेंसी की चिंता सता रही है।

पिछले कुछ दिनों में पार्टी के अंदरूनी सर्वे में भी पार्टी को खुश करने वाले नहीं रहे। उसके बाद से पार्टी ऐसी रणनीति पर काम कर रही है जिससे एक तरफ एंटी इनकंबेंसी के प्रभाव को रोका जा सके तो वहीं प्रधानमंत्री की छवि को आगे रख कर जनता को लुभाया जा सके। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन का प्रदेश में लगातार दखल बढ़ रहा है और यही कारण है कि वरिष्ठ नेताओं की राज्य में सक्रियता भी बड़ी है। विशेष संपर्क अभियान के तहत यह नेता न केवल लोकसभा, विधानसभा क्षेत्र तक पहुंच रहे हैं बल्कि समाज के प्रबुद्ध लोगों से भी संवाद कर रहे हैं। इसके पीछे पार्टी का मकसद जमीनी स्थिति का आकलन करना और उसमें सुधार लाना है।

इसके अलावा पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे भी राज्य में बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की छवि को पार्टी आगे रखकर राज्य के विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने का मन बना चुकी है। इसी के चलते पीएम मोदी के राज्य में प्रवास भी बढ़ रहे हैं। वो 27 जून को राज्य में आ रहे हैं, धार जाएंगे, भोपाल के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे साथ ही शहडोल का भी प्रवास संभावित है।

भाजपा प्रधानमंत्री के प्रवास के जरिए आदिवासी वोट बैंक को लुभाने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी का आदिवासी गौरव दिवस पर मध्य प्रदेश प्रवास हुआ, इसी वर्ग से जुड़ी रानी कमलापति के नाम पर भोपाल में रेलवे स्टेशन का नाम रखा गया। इसी क्रम में अन्य फैसले भी हुए और अब प्रधानमंत्री का आदिवासी बाहुल्य वाला इलाका शहडोल भी जाना हो रहा है। राज्य में भाजपा की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासी इलाके में बड़ा नुकसान हुआ था। 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 सीटें जीत सकी थी और कांग्रेस 30 सीटों पर आगे रही थी। कुल मिलाकर भाजपा को सत्ता से दूर रखने में आदिवासी वोट की अहम भूमिका रही थी।