प्राचीन शिव मंदिर बिशनाह से महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि इस वर्ष सावन महीने में आठ सोमवार होंगे, इसका कारण यह है कि इस वर्ष सावन अधिक मास भी है। अधिक मास को मलमास तथा पुरु षोत्तम मास भी कहते हैं। इस वर्ष सावन का पवित्र महीना 4 जुलाई से आरम्भ होगा और 31 अगस्त तक रहेगा। 4 जुलाई से 31 अगस्त के मध्य आठ सोमवार होंगे जिनका व्रत रखना होगा।
पुरुषोत्तम मास का महत्व: अनूप गिरी बताते है कि जब मलमास की व्यवस्था की गई तब इसे निन्दित एवं वर्जनीय माना गया था। तब भगवान विष्णु ने इस मास को स्वयं अपना नाम पुरुषोत्तम देकर कहा था कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूँ और इसका नाम समस्त जगत में पवित्र होगा। इसलिए पुरुषोत्तम मास में पूजा, पाठ, जप, दान का विशेष महत्व बताया गया है। पुरु षोत्तम मास में दान, पुण्य का अक्षय फल होता है। इस मास में ब्राह्मणों और संतों की सेवा सर्वोत्तम मानी गई है। हमेशा ध्यान रखें दान पुण्य करने से धन क्षीण नहीं होता है उत्तरोत्तर बढ़ता जरु र है। जिस प्रकार से छोटे से बीज से विशाल वृक्ष पैदा हो जाता है ठीक वैसे ही पुरु षोत्तम मास में किया गया दान अनन्त फलदायक सिद्ध होता है। पुरुषोत्तम मास में विवाह, गृह-प्रवेश, मुण्डन, मूर्ति स्थापना, नींव खोदना, छत डालना आदि मांगलिक कार्यों का सम्पादन वर्जित माना जाता है।
सावन महीने का महत्व: अनूप गिरी बताते है कि सावन का पूरा महीना शिवजी का होता है। सोमवार का दिन शिवजी का होने के कारण सावन के सोमवार का बहुत महत्व है। समुद्र मंथन सावन के महीने में ही हुआ था, जिसमें निकले विष को शिवजी ने पी लिया था और अपने कंठ में ही रोक लिया था जिससे वह नीलकंठ कहलाये। विष पीने से शिवजी को बहुत गर्मी लगने लगी बेहोशी छाने लगी तब सभी देवताओं ने शिवजी को जल, दूध, दही, शहद, विल्वपत्र आदि वस्तुयें चढ़ायी। शीतलता पाने के लिए शिवजी ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण किया। तभी से सावन का महीना शिवजी का कहलाने लगा और सावन के महीने में शिवजी को जल, दूध, दही आदि वस्तुओं को चढ़ाने की परम्परा प्रारम्भ हुई। सावन के महीने में आठ सोमवार जो भी मनोकामना आप नंदी के कान में बोलेंगे वह अवश्य पूर्ण होगी।
शिवजी की पूजन में सावधानियां: अनूप गिरी बताते है कि शिवजी की पूजन में सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनें। भस्मी लगाकर, रुद्राक्ष पहनकर ही शिवजी का पूजन करें। आरती करने के तुरंत बाद शिवजी को भोग लगायें इसका कारण है कि शिवजी को अपने भोग में देरी सहन नहीं होती है। सावन के सोमवार के व्रत में एक समय फलाहार करें। अन्न, नमक का सेवन न करें। मंदिर में किसी दूसरे के दीपक से दीपक न जलायें। दक्षिणा अवश्य चढ़ायें, बिना दक्षिणा कोई कार्य पूर्ण नहीं होता है। यह शास्त्र वचन है कि जो व्यक्ति भगवान के पास या देवज्ञ ज्योतिषी के पास खाली हाथ जाता है वह खाली हाथ ही वापस लौटता है।